ऐतिहासिक गांव सरार, उत्तरप्रदेश के जनपद-गोरखपुर में तहसील चौरीचौरा,ब्लाक-ब्रह्मपुर के अन्तर्गत राप्ती नदी के बायें तट पर स्थित है।यह ग्राम सभा चारों ओर से राप्ती एवं गोर्रा नदियों से घिरे द्वाबा क्षेत्र में आता है।स्याही नरेश के पुत्री के शादी में राप्ती नदी में बाढ आने के कारण बारात को उफनती नदी के पार जाने के लिए ग्राम के दुबे वंश के पूर्वज (सतासी स्टेट के राजगुरू ) द्वारा राप्ती नदी के तेज़ धारा को अपने तप से रोक कर बारात को पार कराया गया।उसी के बाद सतासी स्टेट द्वारा दुबे वंश के पूर्वज को धाराधर (धारा को धारण करने वाला ) की उपाधि से अलंकृत किया गया।उसी के बाद सरार के दुबे वंश अपने नाम के साथ "धर"पदवी जोड़ना प्रारम्भ कर दिया।पूरे विश्व में किसी दुबे वंश के नाम के साथ "धर"जुडा है तो निश्चित ही उनके पूर्वज सरार से संबंध रखते हैं। दुबे वंश के कुलदेवता भोलेनाथ एवं कुलदेवी मां काली जी हैं जिनके प्रताप से इस गांव के चारों तरफ़ से नदी का प्रवाह हुआ परन्तु यह गांव अनादिकाल से अब तक नदी की धारा में कभी विलीन नही हुआ है।
ग्राम वासियों पर गांव से कुछ ही दूरी पर शहीद बंधू सिंह के तपस्या से प्रकट हुई मां तरकुलही देवी की भी विशेष कृपा रहती है, साथ ही सरार वंश की उपज परम तपस्वी सन्त देवरहवा बाबा एवं संत तुलसीदास भी है जो शोध से प्रमाणित हुआ है।ये सभी उपलब्धियां सरार को गौरव प्रदान करती हैं ।
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